महफ़िल ए यारा को जब जब सजाया गया // मेरी शायरी // merishayari

महफ़िल ए यारा ग़जल 

 
 
 
 महफ़िल ए यारा को जब जब सजाया गया
 मुझे बुलाया मगर इशारे से उठाया गया।।
रोशनी की जरूरत जब जब पड़ी उन्हें 
मुझ गरीब का ही दिल जलाया गया।।
जरा सी बात का बन जाए न अफसाना
वक़्त ए तआरुफ़ मुझे अजनबी बताया गया।।
क़त्ल उन्होंने किया है ये जानते हैं शहर वाले
इल्जाम फिर भी हम पर लगाया गया।।
उनकी नादानी सबब है हमारी
मगर कसूरवार मेरी दीवानगी को ठहराया गया।।
एक लम्हे मे तर्क ए ताल्लुक कर लिया 
रिश्ता जो एक अरसे से बनाया गया।।
चाँद रोया रोये जमीं आसमां
बेगुनाहों को जब जब सूली पर चढ़ाया गया।।
भरम एक बेवफा की वफ़ा का रखने को
आँसू पीकर महफ़िल मे मुस्कुराया गया।।
कली फूल उदास थे बागबाँ खुश था
शाख से बुलबुल का आशियाँ जब गिराया गया।। ************** **************
 
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तेरी चाहत का मौसम आया है 

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