समझा दो अपनी यादों को दिन-रात तंग करती हैं कर्जदार की तरह // मेरी शायरी

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कितना खूबसूरत सा इत्तेफाक था

रात अमावस की थी और चांद मेरे पास था !!

 

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तुम राय हो.. जो बदल भी सकती है कभी,

मैं कैसे बदलू हूं मैं तो इरादा हूं

 

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अजीब हाल में पहुंच गई है जिंदगी

अब ना कोई अजनबी रहा…ना कोई अपना

 

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मत पूछो कि उसके प्यार करने का अंदाज कैसा था !

उसने इतने सिद्दत से सीने से लगाया

कि सांसें भी रुक गई और जान भी ना गई…

 

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किस्मत की तिजोरी कहां पड़ी है पता नहीं

मैं गम ए जिन्दगी की चाबी साथ लिए फिरता हूं

 

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समझा दो तुम अपनी यादों को

दिन-रात तंग करती हैं कर्जदार की तरह

 

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हम यह कबूल करते हैं कि

हमें फुर्सत नहीं मिलती,

मगर यह भी जरा सोचो

तुम्हें जब याद करते हैं तो जमाना भूल जाते हैं…

 

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हमने यूं ही कही थी जाने की रूठते वक्त,

काश तुमने तब रोका होता…

आज हम इतनी दूर ना आ गए होते

यूंही चलते चलते…

 

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हकीकत ना सही तुम ख्वाब की तरह मिला करो,

भटकते हुए मुसाफिर को चाँदनी रात की तरह मिला करो…

 

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इश्क़ का तो ऐसा है साहब

अब बंद हो चुका नंबर भी डिलीट करने का मन नहीं करता।।

 

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तेरी चाहत का मौसम आया है

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